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शिया और सुन्नी मुसलमानों में क्या अंतर है

शिया और सुन्नी मुसलमानों में क्या अंतर है



    ईसाई धर्म के बाद अगर दुनिया में किसी धर्म के अनुयायी हैं तो वह इस्लाम धर्म के हैं। दुनियां में पचास से भी ज्यादा देश मुस्लिम बाहुल्य हैं। इसके अलावा मुस्लिम पूरी दुनिया के करीब करीब हर देश में हैं। इस्लाम के अनुयायिओं की इतनी संख्या होते हुए भी यह मजहब कई सम्प्रदायों में बंटा हुआ है जिसमे शिया और सुन्नी प्रमुख हैं। वैसे तो शिया और सुन्नी दोनों ही इस्लाम को ही मानने वाले हैं पर कई बातों में शिया और सुन्नी दोनों में अंतर है। आईये देखते हैं शिया और सुन्नी क्या हैं और शिया और सुन्नी दोनों में क्या अंतर है 


    शिया और सुन्नी मुसलमानों में क्या अंतर है


    शिया मुस्लिम और उनका इतिहास 

    इस्लाम धर्म कई सम्प्रदायों में बंटा हुआ है। शिया मुस्लिम भी इन्ही में से एक होते हैं। शिया मुस्लिमों का पुरे इस्लाम में सुन्नियों के बाद दूसरा स्थान है। वैसे तो इनकी संख्या पूरी मुस्लिम आबादी का केवल 15 प्रतिशत ही है। शिया मुस्लिमों का इतिहास मोहम्मद साहेब की मृत्यु के बाद से ही शुरू होता है। शियाओं के उदय की वास्तविक वजह उत्तराधिकार विवाद था। सन 632 में मोहम्मद साहेब की मृत्यु के पश्चात् उनकी ग़दीर की वसीयत के मुताबिक हज़रत अली जो मोहम्मद साहेब के भतीजे और दामाद थे, को इमाम और ख़लीफ़ा चुना गया और उनके अनुयायी शियाने अली कहलाये जो वर्तमान में शिया कहलाते हैं। पर यह बात कुछ लोगों को पसंद नहीं आयी। वे लोग मोहम्मद साहेब के ससुर अबू बकर को पहला खलीफा मानते थे। सुन्नी उमर उस्मान और उथमान को इनके बाद खलीफा मानते हैं। इन तीनों के बाद वे अली को अपना चौथा खलीफा मानते हैं। शिया मुस्लिमों ने इसे गलत माना। शिया अली को खलीफा न मान इमाम मानते हैं। शिया अली के बाद उनके बेटे हसन और हुसैन को भी अपना इमाम मानते हैं। इस प्रकार से शियाओं के 12 इमाम हुए। 

    शिया और सुन्नी मुसलमानों में क्या अंतर है

    शिया मुस्लिम पूरी दुनिया में फैले हुए हैं किन्तु इनकी मुख्य आबादी ईरान, इराक, पाकिस्तान, तुर्की, भारत, अजरबैजान,बहरीन आदि देशों में है। ईरान में इनकी संख्या 96 प्रतिशत से भी अधिक है वहीँ इराक में ये करीब 66 प्रतिशत और पाकिस्तान तथा तुर्की में 20 प्रतिशत के आसपास है।
    शिया मुस्लिम अन्य मुस्लिम की तरह एक ही अल्ला में विश्वास करते हैं। इनकी धार्मिक पुस्तक कुरान यही और ये भी मोहम्मद साहेब को अंतिम पैगम्बर मानते हैं। परन्तु शिया मुस्लिम दिन में केवल तीन बार नमाज पढ़ते हैं। ये मगरिब और ईशा की नमाज एक साथ पढ़ते हैं। शिया हाथ बाँध कर नमाज पढ़ते हैं। शियाओं के धार्मिक स्थान मस्जिद, इमामबाड़ा, अशूर खाना और ईदगाह होते हैं। शिया मुहर्रम का त्यौहार उनके इमाम अली के बेटे हुसैन की शहादत में मनाते हैं। मुहर्रम के पुरे महीने के दौरान ये मातम मनाते हैं। उनका मानना है मुहर्रम की दसवीं तारीख को कर्बला में सुन्नियों ने हुसैन का कत्ल कर दिया था। इस वजह से ये पुरे सवा दो महीने मातम मनाते हैं और कोई भी ख़ुशी का काम इस दौरान नहीं करते हैं। मुहर्रम में शिया बड़े बड़े ताजिये निकलते हैं। ये बड़े बड़े जुलुस निकालते हैं और चाकू और खंजर से अपने आप को घायल कर लेते हैं। 


    शिया और सुन्नी मुसलमानों में क्या अंतर है

    शियाओं में अस्थाई निकाह मुतुआह का रिवाज है। ये अपने धार्मिक गुरुओं को आयतुल्लाह, इमाम, मौलाना, सैयद आदि के नाम से पुकारते हैं। शिया अकसर "या अली " या नारा ए हैदरी का प्रयोग करते हैं।

    सुन्नी इस्लाम और उनका इतिहास 

    पुरे विश्व में सबसे अधिक जनसँख्या सुन्नी मुसलमानों की ही है। सुन्नी मुसलमान पुरे विश्व की मुस्लिम आबादी में करीब 87 से 90 प्रतिशत हैं। सुन्नी मुसलमानों के अनुसार मोहम्मद साहेब ने अपने उत्तराधिकारी की कोई स्पष्ट घोषणा नहीं की थी। इसी वजह से वे सुन्नत के अनुसार उनके ससुर अबू बकर को अपना खलीफा चुन लिया। अबू बकर का खलीफा बनाना एक विवाद को जन्म दे दिया। कुछ लोगों का मानना था कि मोहम्मद साहेब ने ग़दीर में अपने उत्तराधिकारी की घोषणा कर दी थी और उनके अनुसार वे अपने भतीजे और दामाद हज़रत अली को अपने बाद खलीफा मान चुके थे। यहीं पर इस्लाम में दो सम्प्रदायों का उदय हुआ और अबू बकर को खलीफा मानने वाले समुदाय सुन्नी कहलाये। 

    शिया और सुन्नी मुसलमानों में क्या अंतर है

    सुन्नी जिसे सुननिज्म भी कहा है यह सुन्नह शब्द से निकला हुआ है जिसका अर्थ होता है आदत,सामान्य व्यवहार या परंपरा। अरबी भाषा में सुन्नह एक विशेषण है जिसका शाब्दिक अर्थ सुन्नत से सम्बंधित होता है। सुन्नत पैगम्बर मोहम्मद द्वारा कही गयी बातों और जीवन शैली, व्यवहार के सन्दर्भ में मुस्लिम प्रयोग करते हैं और इन्ही बातों का अनुसरण करने वाले सुन्नी कहलाये।
    सुन्नी मुस्लिम दिन में पांच बार नमाज पढ़ते हैं। ये एकेश्वरवाद में विश्वास रखते हैं यानि अल्लाह के सिवा किसी और को नहीं मानते। ये पैगम्बर मोहम्मद को आखरी रसूल मानते हैं और इनकी मजहबी किताब कुरान है। सुन्नी इस्लाम के पांचों स्तम्भ का पालन करते हैं। अपना इनके धार्मिक स्थल मस्जिद और ईदगाह होते हैं। सुन्नी संप्रदाय वाले मुहर्रम को बड़े ही सादगी से मनाते हैं। सुन्नी धार्मिक व्यक्तिओं को खलीफा,इमाम,मुजतहिद,अल्लामा,मौलाना इत्यादि बोला जाता है।

    शिया और सुन्नी मुसलमानों में क्या अंतर है

    पुरे विश्व में सुन्नी मुसलमानों की संख्या करीब एक अरब 30 लाख के आसपास है। सुन्नी मुस्लमान विश्व के लगभग हर भाग में पाए जाते हैं किन्तु सऊदी अरब, भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया आदि देशों में इनका बाहुल्य है। सुन्नी इस्लाम पांच सम्प्रदायों में बंटा हुआ है हनफ़ी सुन्नी, मालिकी सुन्नी, हम्बली सुन्नी, शाफ़ई सुन्नी तथा सलफ़ी सुन्नी।

    शिया और सुन्नी में क्या अंतर है


    • शिया मुस्लिम मोहम्मद साहेब की मृत्यु के पश्चात् उनके भतीजे और दामाद हज़रत अली को उनका उत्तराधिकारी और अपना इमाम मानते हैं जबकि सुन्नी मुस्लिम मोहम्मद साहेब की मृत्यु के बाद अबू बकर, उमर उस्मान और उथमान के बाद हज़रत अली को अपना चौथा खलीफा मानते हैं।
    शिया और सुन्नी मुसलमानों में क्या अंतर है
    • शिया दिन में केवल तीन बार नमाज पढ़ते हैं। वे मगरिब और ईशा की नमाज को मिला देते हैं। वहीँ सुन्नी दिन में पांच बार नमाज पढ़ते हैं।

    • शिया नमाज पढ़ते समय हाथ खुले रखते हैं वहीँ सुन्नी हाथ बाँध कर नमाज पढ़ते हैं।

    • शिया मुसलमान मोहर्रम की दसवीं तारीख को कर्बला में हुसैन के शहादत को याद करके मोहर्रम का त्यौहार मातम के रूप में मनाते हैं। उनकी याद में ये ताज़िये निकालते हैं और जुलुस में अपने आप को चाक़ू और खंजर से घायल कर लेते हैं। ये पुरे सवा दो महीने तक मातम मनाते हैं। और इस दौरान कोई भी ख़ुशी का काम नहीं करते। सुन्नी मुसलमान ताज़िये नहीं निकालते और इसे वे गलत बताते हैं। हालाँकि वे हुसैन के कत्ल का दुःख जरूर मनाते हैं।

    • शिया मुस्लिम मानते हैं कि सुन्नियों ने इमाम हुसैन को मारा था जबकि सुन्नी मानते हैं कि शियाओं ने खुद हुसैन साहेब को मारा था और खुद ही रोते हैं।

    • शिया इमामों को मानते हैं जबकि सुन्नी खलीफाओं को मानते हैं। शिया सजदे के समय अपना सर लकड़ी के बॉक्स या ईंट पर रखते हैं जबकि सुन्नी अपना सर जमीन पर रखते हैं।
    शिया और सुन्नी मुसलमानों में क्या अंतर है
    • मोहर्रम के एक से दस तारीख तक शिया तबर्रा कहते हैं जो कि माना जाता है कि सुन्नियों के विरुद्ध अपमानजनक शब्द है सुन्नी ऐसा कुछ नहीं कहते।

    • शिया मुस्लिमों में एक अस्थाई विवाह होता है जिसे मुतुआ कहते हैं ऐसा सुन्नियों में नहीं होता।

    • शिया मुस्लिम के मजहबी स्थल मस्जिद, इमामबाड़ा, ईदगाह और अशूरखाना होते हैं जबकि सुन्नियों के धार्मिक स्थल मस्जिद और ईदगाह होते हैं।

    • पूरी दुनिया में शियाओं की जनसँख्या पूरी मुस्लिम आबादी का करीब 15 प्रतिशत है। यह लगभग 20 करोड़ के आस पास है जबकि सुन्नी की संख्या एक अरब 30 लाख के आस पास है।

    • शिया के धार्मिक गुरुओं को आयतुल्लाह, इमाम, मुज्तहिद, मौलाना, होजातोलेसलाम, सैयद, मौल्लाह बोला जाता है जबकि सुन्नियों के मजहबी व्यक्तियों को खलीफा, इमाम, मुजतहिद, अल्लामा, मौलाना आदि बोला जाता है।

    • शिया "या अली" और "नारा ए हैदरी का नारा देते हैं। वे खैरल अमल का प्रयोग अकसर करते हैं तथा दुआ के बाद आमीन नहीं कहते हैं।

    • शिया मुस्लिम मोहम्मद की पत्नी को षड्यंत्रकारी मानते थे उनका मानना था कि उन्ही ने मोहम्मद साहेब को जहर दे कर मारा था। सुन्नी ऐसा नहीं मानते।
    शिया और सुन्नी मुसलमानों में क्या अंतर है
    • शिया मज़ारों की इबादत करते हैं जबकि सुन्नी इसे बुतपरस्ती मानते हैं।

    उपसंहार

    शिया और सुन्नी मुस्लिम की अधिकांश बाते सामान हैं। दोनों अल्ला में विश्वास रखते हैं दोनों की धार्मिक पुस्तक कुरान है और दोनों ही मोहम्मद साहेब को आखरी पैगम्बर मानते हैं। कई बाते समान होते हुए भी शिया और सुन्नी एक दूसरे से एकदम अलग संप्रदाय हैं और दोनों में गहरी खाई है। उत्तराधिकार से शुरू हुई यह लड़ाई और बंटवारा समय के साथ साथ अविश्वास और गलफहमियों की वजह से और गहरी होती गयी।

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