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अस्त्र और शस्त्र में क्या अंतर है हिंदी में जानकारी

अस्त्र और शस्त्र में क्या अंतर है



प्राचीन हिन्दू ग्रंथों एवं पुराणों में बहुत सारे युद्धों का वर्णन मिलता है। इन युद्धों में कई तऱह के हथियारों के प्रयोग का जिक्र हुआ है जैसे धनुष बाण, गदा, सुदर्शन चक्र, ब्रह्मास्त्र आदि। हथियारों का वर्णन करते समय प्रायः इनके लिए सामूहिक रूप से अस्त्र या शस्त्र का प्रयोग किया जाता था। वर्तमान युग में भी हथियारों की चर्चा करते समय प्रायः हम अस्त्र या शस्त्र शब्द का प्रयोग करते हैं। वास्तव में अस्त्र एवं शस्त्र हम किसी भी हथियार को नहीं कह सकते। दोनों शब्दों में अंतर है। हथियारों की प्रकृति के आधार पर उन्हें अस्त्र या शस्त्र कहा जाता है।


अस्त्र और शस्त्र में क्या अंतर है हिंदी में जानकारी



वैदिक काल में अस्त्र शस्त्र कई प्रकार के होते थे :

अमुक्ता - वे आयुध जो फेंके नहीं जाते थे।

मुक्ता - वे आयुध जो फेंके जाते थे।

इनके भी दो प्रकार थे-

पाणिमुक्ता - हाथ से फेंके जानेवाले

यंत्रमुक्ता -यंत्र द्वारा फेंके जानेवाले।


मुक्तामुक्त - वह शस्त्र जो फेंककर या बिना फेंके दोनों प्रकार से प्रयोग किए जाते थे।

मुक्तसंनिवृत्ती - वे शस्त्र जो फेंककर लौटाए जा सकते थे।

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अस्त्र किसे कहते हैं


हमारे प्राचीन ग्रंथों में बहुत सारे हथियारों का वर्णन किया गया है। इन वर्णनों में एक से एक विध्वंसक और घातक हथियारों की चर्चा की गयी है। इन हथियारों में कुछ हथियार योद्धा के द्वारा चलाकर या फेंक कर प्रयोग किये जाते थे। ऐसे हथियारों को अस्त्र कहा जाता था। प्राचीन काल में अस्त्रों को मन्त्र पढ़कर दूर फेंका जाता था। अतः वे सभी हथियार जो मन्त्र, तंत्र या यंत्र के द्वारा दूर फेंका जाए, अस्त्र कहलाते हैं। वर्तमान में अस्त्र अग्नि, गैस, विद्युत तथा यान्त्रिक उपायों से चलते हैं। पुराणों में ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र, गरूड़ास्त्र, ये सभी अस्त्रों के नाम हैं।

अस्त्र मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं

मन्त्रों की सहायता से चलाये जाने वाले अस्त्र :

ये दिव्य अस्त्र होते हैं। प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और मन्त्र-तन्त्र के द्वारा उसका संचालन होता है। वस्तुत: इन्हें दिव्य तथा मान्त्रिक-अस्त्र कहते हैं। इन बाणों के कुछ रूप इस प्रकार हैं—

आग्नेय :यह विस्फोटक अस्त्र है। यह अग्नि बरसाकर सब कुछ भस्मीभूत कर देता है। इसका प्रतिकार पर्जन्य है।

पर्जन्य : यह विस्फोटक बाण है। यह जल बरसाकर सब कुछ ठंडा कर देता है। इस प्रकार यह आग्न्येयास्त्र का प्रतिकार है।

वायव्य : इस अस्त्र से भयंकर तूफान आता है और अन्धकार छा जाता है।


पन्नग : इससे सर्प पैदा होते हैं। इसके प्रतिकार स्वरूप गरुड़ अस्त्र छोड़ा जाता है।

गरुड़ : इस बाण के चलते ही गरुड़ उत्पन्न होते है, जो सर्पों को खा जाते हैं।

ब्रह्मास्त्र : यह अचूक विकराल अस्त्र है। शत्रु का नाश करके छोड़ता है। इसका प्रतिकार दूसरे ब्रह्मास्त्र से ही हो सकता है, अन्यथा नहीं।

पाशुपतास्त्र : इससे सम्पूर्ण विश्व नाश हो सकता हैं यह बाण महाभारतकाल में केवल अर्जुन के पास था।

नारायणास्त्र : यह भी पाशुपत के समान विकराल अस्त्र है। इस नारायण-अस्त्र का कोई प्रतिकार ही नहीं है। यह बाण चलाने पर अखिल विश्व में कोई शक्ति इसका मुक़ाबला नहीं कर सकती। इसका केवल एक ही प्रतिकार है और वह यह है कि शत्रु अस्त्र छोड़कर नम्रतापूर्वक अपने को अर्पित कर दे। कहीं भी हो, यह बाण वहाँ जाकर ही भेद करता है। इस बाण के सामने झुक जाने पर यह अपना प्रभाव नहीं करता। इन दैवी बाणों के अतिरिक्त ब्रह्मशिरा और एकाग्नि आदि बाण है।

बिना मन्त्रों की सहायता से चलाये जाने वाले अस्त्र :

वे वैसे अस्त्र हैं, जो यान्त्रिक उपाय से फेंके जाते हैं जैसे अस्त्रनलिका आदि हैं। नाना प्रकार के अस्त्र इसके अन्तर्गत आते हैं। अग्नि, गैस, विद्युत से भी ये अस्त्र छोडे जाते हैं। इन अस्त्रों के लिये देवी और देवताओं की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये भयकंर अस्त्र हैं और स्वयं ही अग्नि, गैस या विद्युत आदि से चलते हैं।




शस्त्र किसे कहते हैं


शस्त्र वैसे ख़तरनाक हथियार हैं, जिनके प्रहार से चोट पहुँचती है और मृत्यु होती है। ये हथियार अधिक उपयोग किये जाते हैं। पुराणों में शस्त्र उन्हें कहा जाता था जो हाथ में पकड़ते हुए चलाए जाते थे। अस्त्रों की तरह इन्हें दूर नहीं फेंका जाता था। ये शस्त्र दुश्मन पर सीधा प्रहार करने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे। इनसे दुश्मन का वध करके उसे मृत्यु दिलाई जाती थी। तलवार, परशु, गदा, त्रिशूल, बरछा, ये सभी शास्त्रों की श्रेणी में आते थे। इन सभी को हाथ में पकड़कर दुश्मन पर प्रहार किया जाता था।


कुछ ऐसे शस्त्रों का भी वर्णन मिलता है जो अस्त्र शस्त्र दोनों के गुण रखते हैं। उदहारण के लिए धनुष बाण। इसमें धनुष तो योद्धा के हाथ में ही रहता है किन्तु बाण जाकर वार करता है। ऐसे स्थिति में धनुष को शस्त्र और बाण को अस्त्र कहते हैं।


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अस्त्र और शस्त्र में क्या अंतर है




  • ऐसे हथियार जिनका प्रयोग दुश्मन पर फेंक कर किया जाय उन्हें अस्त्र कहा जाता है जबकि उन हथियारों को जिन्हे हाथ में पकड़ कर दुश्मन पर वार किया जाता है उन्हें शस्त्र कहा जाता है।


  • अस्त्रों का प्रयोग करते समय प्रायः किसी मन्त्र,तंत्र या यंत्र का जाप करके किया जाता था जबकि शस्त्रों के प्रयोग में ऐसे कोई मन्त्र की आवश्यकता नहीं होती थी।

  • अस्त्र बहुत ज्यादा संहारक होते हैं इनसे बहुत ज्यादा विनाश होता था। कई ऐसे अस्त्र थे जिनसे पूरी सृष्टि का विनाश संभव था जबकि शस्त्र अपेक्षाकृत कम संहारक होते थे। इनसे एक बार में एक ही व्यक्ति पर वार किया जाता है।


  • अस्त्र कुछ खास चुनिंदा लोगों के पास होता था जबकि शस्त्र किसी के पास भी हो सकता था।

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  • ब्रह्मास्त्र,पाशुपतास्त्र,गरुड़ास्त्र, आग्नेय,पर्जन्य आदि अस्त्रों के नाम हैं जबकि गदा,तलवार, भाला, परशु,पाश आदि शस्त्रों के उदहारण हैं।


  • अस्त्र में अग्नि,वर्षा,वायु के अलावे जीवों, धातुओं का प्रयोग होता था जैसे आग्नेय अस्त्र से अग्नि वर्षा होती थी,पर्जन्य अस्त्र से बारिश तो वायव्य से भयंकर तूफान उठता था, सर्पास्त्र जैसे पन्नग अस्त्र से सर्प निकलते थे और गरुड़ास्त्र से गरुड़। शस्त्रों में इस तरह की चीज़ों का प्रयोग नहीं किया जाता था। शस्त्रों के निर्माण में प्रायः धातु और लकड़ी आदि का प्रयोग होता था।

उपसंहार


इसप्रकार हम देखते हैं कि प्राचीन काल से ही मनुष्य विभिन्न प्रकार के अस्त्रों शस्त्रों का प्रयोग करता आया है जिनमे अस्त्र चला कर या फेंककर प्रयोग किये जाने वाले हथियार हैं जबकि शस्त्र को अपने हाथों में लेकर वार करना पड़ता है। हालाँकि कई ऐसे अस्त्र हैं जिनमे यंत्र तो हाथ में ही रहता है किन्तु प्रहारक को उसकी सहायता से दूर फेंका जाता है। तीर धनुष, बन्दुक गोली आदि इसी प्रकार के अस्त्र हैं।

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