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द्वंद्व और द्विगु समास में क्या अंतर है



हिन्दी भाषा के व्याकरण में "समास" एक महत्वपूर्ण चैप्टर है। समास को लेकर विभिन्न परीक्षाओं में अकसर कई प्रश्न पूछे जाते हैं। अतः हिंदी व्याकरण की तैयारी करने समय समास पर छात्रों को विशेष ध्यान देना चाहिए। इसके अतिरिक्त हिंदी भाषा पर व्यापक अधिकार और शब्द सामर्थ्य बढ़ाने हेतु इसका अध्ययन आवश्यक है।

हिंदी भाषा में समास का शब्द रचना में एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वास्तव में समास शब्दों का सक्षिप्तीकरण होता है जिससे नए शब्दों का निर्माण होता है। समास की परिभाषा देते समय कहा जाता है जब दो या दो से अधिक शब्द मिलकर एक नया और सार्थक शब्द बनाते हैं तो यह नया शब्द समास कहलाता है। उदहारण के लिए राजा का पुत्र यानि राजपुत्र, रसोई के लिए घर रसोईघर, चन्द्रमा है जिसके शिखर पर अर्थात चंद्रशेखर आदि।



समास के छः भेद होते है 
  • तत्पुरुष समास
  • अव्ययीभाव समास
  • कर्मधारय समास
  • द्विगु समास
  • द्वंद्व समास
  • बहुव्रीहि समास

समास और उसके भेदों के बारे विस्तृत रूप से जानने के लिए तथा समास और संधि के बीच अंतर को जानने के लिए मेरे इस पोस्ट को जरूर पढ़ें

संधि और समास में क्या अंतर है 

अकसर छात्र समास को पढ़ते समय या प्रयोग करते समय द्वंद्व समास और द्विगु समास में भ्रमित हो जाते हैं और द्वंद्व की जगह द्विगु और द्विगु की जगह द्वंद्व का प्रयोग कर बैठते हैं। आज के इस पोस्ट में हम द्वंद्व और द्धिगु समास के बारे में गहन अध्ययन करेंगे जैसे द्वंद्व समास क्या है द्वंद्व समास के उदहारण क्या है द्वंद्व समास कितने प्रकार का होता है, द्धिगु समास किसे कहते हैं, द्धिगु समास के उदहारण, द्वंद्व समास और द्धिगु समास में क्या अंतर है आदि।



द्वंद्व समास किसे कहते हैं
द्वंद्व समास की परिभाषा
द्वंद्व समास की पहचान
द्वंद्व समास की पहचान
द्वंद्व समास के कुछ अन्य उदाहरण 


द्वंद्व समास किसे कहते हैं

समास के सभी भेदों में द्वंद्व समास का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। यह समास प्रायः दो पदों से मिलकर बना होता है। द्वंद्व समास के दोनों पद प्रधान होते हैं और दोनों पदों बीच प्रायः योजक चिह्न लगा होता है। द्वंद्व समास का विग्रह करने पर और, या एवं जैसे शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है। उदहारण के लिए माता-पिता(माता और पिता) सुख-दुःख (सुख एवं दुःख) राजा-रानी (राजा और रानी ) आदि।
द्वंद्व समास में एक ही प्रकृति के पदों का विग्रह करने पर "और"या "एवं" का प्रयोग होता है जैसे माता-पिता =माता और पिता, दिन-रात = दिन और रात आदि। इसी तरह द्वंद्व समास में विपरीत प्रकृति के पदों का विग्रह करने पर "या" का प्रयोग किया जाता है जैसे सुरासुर=सुर या असुर, धर्मोधर्म= धर्म या अधर्म आदि।



द्वंद्व समास की परिभाषा

ऐसे समास शब्द जिनमें समस्त या दोनों पद प्रधान हो और जब उन शब्दों को मिलाया जाता है तो दोनों पदों को मिलाते समय और, अथवा, या, एवं इत्यादि योजक शब्दों का लोप होता है, उस समास द्वंद समास कहा जाता है।

उदहारण


राजा-रंक = राजा और रंक
दिन-रात= दिन और रात
अपना- पराया= अपना और पराया
छोटा-बड़ा= छोटा और बड़ा
भला-बुरा= भला और बुरा
काला-गोरा= काला और गोरा
देश-विदेश= देश और विदेश
अन्न-जल= अन्न और जल



इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि द्वंद्व समास दो पदों से मिलकर बनता है और इसमें दोनों पदों की प्रधानता होती है। इसके साथ ही समास बनने के बाद इनके बीच के योजक चिह्न लुप्त हो गए। इस तरह हम देखते हैं कि द्वंद्व समास अपने दोनों पदों के साथ बिना योजक चिह्नों के साथ प्रयोग होते हैं।


द्वंद्व समास की पहचान


  • द्वंद्व समास के समस्त पद में दोनों पद योजक चिह्न से जुड़े होते हैं।

  • द्वंद्व समास के दोनों पद प्रधान होते हैं।

  • प्रत्येक दो पदों के बीच और, एवं, तथा, या, अथवा में से किसी एक का लोप पाया जाता है।

  • विग्रह करने पर दोनों शब्दों के बीच, अथवा, या आदि शब्द लिखे जाते हैं।


द्वंद्व समास के कुछ अन्य उदाहरण 

भूल-चूक : भूल या चूक
सुख-दुख : सुख या दुःख
गौरीशंकर : गौरी और शंकर


ऊपर दिए गए उदाहरणों में जैसा की आपने देखा राधा-कृष्ण, राजा-प्रजा, गुण-दोष, नर-नारी आदि शब्द बने जब राधा और कृष्ण, राजा और प्रजा, गुण और दोष एवं नर और नारी आदि शब्दों का समास हुआ। इनका समास होने पर हमने देखा की यहां शब्दों का समास होने पर और योजक चिन्ह का लोप हो जाता है। इन शब्दों में कोई भी पद प्रधान नहीं होता।

द्वंद्व समास कि भी बिलकुल ऐसी ही विशेषताएं होती हैं जिनमें दोनों पद प्रधान होते हैं एवं जोड़ने पर योजक लुप्त हो जाते हैं। अतः यह उदाहरण द्वंद्व समास के अंतर्गत आयेंगे।

एड़ी-चोटी : एड़ी और चोटी

लेन-देन : लेन और देन
भला-बुरा : भला और बुरा
जन्म-मरण : जन्म और मरण
पाप-पुण्य : पाप और पुण्य
तिल-चावल : तिल और चावल
भाई-बहन : भाई और बेहेन
नून-तेल : नून और तेल


जैसा की आप ऊपर दिए गए सभी उदाहरणों में देख सकते हैं यहां एड़ी चोटी, जन्म-मरण जैसे शब्दों का समास होने पर योजक चिन्ह का लोप हो गया है। इन


ठण्डा-गरम – ठण्डा या गरम
नर-नारी – नर और नारी
खरा-खोटा – खरा या खोटा
राधा-कृष्ण – राधा और कृष्ण
राजा-प्रजा – राजा एवं प्रजा
भाई-बहन – भाई और बहन
गुण-दोष – गुण और दोष
सीता-राम – सीता और राम



द्वन्द्व समास तीन प्रकार के होते हैं–


इतरेतर द्वन्द्व : इस कोटि के समास में समुच्चयबोधक अव्यय ‘और’ का लोप हो जाता है।

जैसे–
सीताराम, गाय–बैल, दाल–भात, नाक–कान आदि।

वैकल्पिक द्वन्द्व : इस समास में विकल्प सूचक समुच्चयबोधक अव्यय ‘वा’, ‘या’, अथवा’ का प्रयोग होता है, जिसका समास करने पर लोप हो जाता है ।

जैसे–
धर्म या अधर्म = धर्माधर्म
सत्य या असत्य = सत्यासत्य
छोटा या बड़ा = छोटा–बड़ा

समाहार द्वन्द्व : इस कोटि के समास में प्रयुक्त पदों के अर्थ के अतिरिक्त उसी प्रकार का और भी अर्थ सूचित होता है।

जैसे–
दाल, रोटी वगैरह = दाल–रोटी
कपड़ा, लत्ता वगैरह = कपड़ा–लत्ता

जब दोनों पद विशेषण हों और उसी अर्थ में आए तब वह द्वन्द्व न होकर कर्मधारय हो जाता है।

जैसे-
भूखा–प्यासा लड़का रो रहा है।

यहाँ ‘भूखा–प्यासा’ लड़के का विशेषण है। अतः, कर्मधारय के अन्तर्गत आएगा। अव्ययीभाव समास में दो ही पद होते हैं। बहुव्रीहि में दो से ज्यादा, तत्पुरुष में भी दो से अधिक पद देखे जाते हैं; परन्तु द्वन्द्व समास में तो बहुत ज्यादा पद भी हो सकते हैं। जैसे

आज मेहमानों को भात–दाल–तरकारी–तिलौड़ी–पापड़–घी–सलाद–दही आदि खिलाए गए।
रेखांकित पद द्वन्द्व समास के हैं।


द्विगु समास किसे कहते हैं
द्विगु समास के उदाहरण 
द्वंद्व और द्विगु समास में क्या अंतर है


द्विगु समास किसे कहते हैं


वह समास जिसका पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है तथा समस्तपद किसी समूह या फिर किसी समाहार का बोध करता है तो वह द्विगु समास कहलाता है। जैसे: चौराहा, दोपहर, पंचतंत्र, सप्ताह आदि।




द्विगु समास दो प्रकार के होते हैं १ समाहार द्विगु तथा २ उपपद प्रधान द्विगु समास।



द्विगु समास के उदाहरण 

चौराहा : चार राहों का समूह

त्रिकोण : तीन कोणों का समूह
तिरंगा : तीन रंगों का समूह
त्रिफला : तीन फलों का समूह
दोपहर : दो पहरों का समाहार
शताब्दी : सौ सालों का समूह
पंचतंत्र : पांच तंत्रों का समाहार
सप्ताह : सात दिनों का समूह


जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरणों में देख सकते हैं कि सभी शब्दों में पूर्वपद एक संख्यावाचक विशेषण है एवं समस्तपद किसी न किसी समूह या फिर समाहार का बोध करा रहा है। जैसे दोपहर में पहला पद है ‘दो’ जो एक संख्यावाचक विशेषण है एवं समस्तपद दोपहर दो पहरों के समाहार का बोध करा रहा है। अतः यह उदाहरण द्विगु समास के अंतर्गत आयेंगे। इसी तरह चौराहा का पहला वर्ण है चौ जिसका मतलब होता है चार। चार एक संख्यावाचक विशेषण है। चौराहा समस्तपद चार राहों के समूह का बोध करा रहा है। ठीक इसी प्रकार तिरंगा में पहला वर्ण है ति जिसका मतलब तीन होता है। यह शब्द एक संख्यावाची विशेषण शब्द है। अतः यह उदाहरण द्विगु समास के अंतर्गत आयेंगे।

चारपाई : चार पैरों का समूह

चतुर्मुख : चार मुखों का समाहार
नवरत्न : नव रत्नों का समाहार
सतसई : सात सौ दोहों का समाहार
त्रिभुवन : तीन भुवनों का समाहार
दोराहा : दो राहों का समाहार


द्विगु समास के कुछ अन्य उदाहरण 

त्रिलोक : तीन लोकों का समाहार
नवरात्र : नौ रात्रियों का समूह
अठन्नी : आठ आनों का समूह
दुसुती : डो सुतो का समूह
पंचतत्व : पांच तत्वों का समूह
पंचवटी : पांच वृक्षों का समूह
सप्तसिंधु : सात सिन्धुओं का समूह
चौमासा : चार मासों का समूह
चातुर्वर्ण : चार वर्णों का समाहार



द्वंद्व और द्विगु समास में क्या अंतर है

  • द्वंद्व समास वैसे समास को कहते हैं जिसके दोनों ही पद प्रधान या समान महत्त्व के होते हैं जैसे दाल-भात, लोटा-डोरी आदि जबकि द्विगु समास में पहला पद एक संख्यावाचक शब्द होता है जैसे पंचवटी, तिरंगा आदि।

  • द्वंद्व समास के दोनों पदों का विग्रह करने पर योजक चिह्न "और, या, एवं" आदि की आवश्यकता पड़ती है वहीँ द्विगु समास का विग्रह करने पर संख्यावाचक शब्द के साथ दूसरे शब्द के समूह या समाहार का बोध होता है।
उपसंहार

द्वंद्व समास और द्विगु समास दोनों ही समास के अत्यंत महत्वपूर्ण भेद हैं जिसमे द्वंद्व समास दो समान पदों का समासिकरण होता है वहीँ द्विगु समास में प्रथम पद किसी न किसी संख्या का बोध कराता है।

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