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हिन्दू विवाह और मुस्लिम विवाह में क्या अंतर है

Differences between Hindu Marriages and Muslim Marriages 



विवाह, जिसे शादी भी कहा जाता है, दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है जो उन लोगों के बीच, साथ ही उनके और किसी भी परिणामी जैविक या दत्तक बच्चों तथा समधियों के बीच अधिकारों और दायित्वों को स्थापित करता है। विवाह मानव-समाज की अत्यंत महत्वपूर्ण प्रथा या समाजशास्त्रीय संस्था है। यह समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई- परिवार-का मूल है। यह मानव प्रजाति के सातत्य को बनाए रखने का प्रधान जीवशास्त्री माध्यम भी है।


विवाह समाज द्वारा मान्यता प्राप्त एक सामाजिक संस्था है, जिसमें स्त्री-पुरुष को काम-वासना की संतुष्टि के लिए समाज द्वारा स्वीकृत प्रदान की जाती है। समाज की यह स्वीकृति कुछ संस्कारों को पूरा करने के पश्चात् ही प्राप्त होती है। इस अर्थ में विवाह यौन-संबंधों के नियंत्रण एवं नियमन का साधन है। अन्य शब्दों में, समाज द्वारा अनुमोदित स्त्री-पुरुष के संयोग को विवाह कहते हैं। विभिन्न समाजाशास्त्रियों ने इसे निम्न प्रकार परिभाषित किया है-


हिन्दू विवाह और मुस्लिम विवाह में क्या अंतर है


विवाह की परिभाषायें 


⦁ जेम्स (James) के अनुसार-“विवाह मानव समाज में सार्वभौमिक रूप से पाई जाने वाली संस्था है जो कि यौन-संबंध, गृह-संबंध, प्रेम तथा मानवीय स्तर पर व्यक्तित्व के जैविकीय, मनोवैज्ञानिक सामाजिक, नैतिक व आध्यात्मिक विकास की आवश्यकताओं को पूरा करती है।”
⦁ जेकब्स एवं स्टर्न (Jacobs and Stern) के अनुसार–“विवाह एक अथवा अनेक पति तथा पत्नियों के सामाजिक संबंध का नाम है। विवाह उस संस्कार का भी नाम है, जिसके द्वारा पति-पत्नी आपस में सामाजिक संबंधों में बँधे होते हैं।”
⦁ वेस्टरमार्क (Westermarck) के अनुसार-“विवाह एक या अधिक पुरुषों का एक अथवा अधिक स्त्रियों के साथ होने वाला वह संबंध है, जो प्रथा व कानून द्वारा स्वीकृत होता है और जिसमें संगठन में आने वाले दोनों पक्षों तथा उनसे उत्पन्न बच्चों के अधिकारों व कर्तव्यों का समावेश होता है।”
⦁ बोगार्डस (Bogardus) के अनुसार-“विवाह स्त्रियों और पुरुषों को पारिवारिक जीवन में प्रवेश कराने वाली संस्था है।”
⦁ मैलिनोव्स्की (Malinowski) के अनुसार–‘विवाह केवल यौन-संबंधों को अपनाना नहीं है, अपितु यह सामाजिक संस्था है, जो मिश्रित सामाजिक परिस्थितियों पर आश्रित है।”


मनुस्मृति के टीकाकार मेधातिथि के शब्दों में विवाह एक निश्चित पद्धति से किया जाने वाला, अनेक विधियों से संपन्न होने वाला तथा कन्या को पत्नी बनाने वाला संस्कार है।

रघुनंदन के मतानुसार उस विधि को विवाह कहते हैं जिससे कोई स्त्री (किसी की) पत्नी बनती है।

हिंदू विवाह



हिंदू धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में से एक और सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार या एग्रीमेंट होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी क बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे कि किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे ले कर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।


हिंदू धर्म में, विवाह दो व्यक्तियों, शाश्वत आत्माओं को पुरुषार्थ या जीवन के चार लक्ष्यों: धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को संयुक्त रूप से आगे बढ़ाने के उद्देश्य से जोड़ता है। विवाह को एक आध्यात्मिक साझेदारी माना जाता है जो वर्तमान और भविष्य के जीवन में भागीदारों के मन, शरीर और आत्माओं को एकजुट करता है, और उनके दो परिवारों के बीच पवित्र बंधन बनाता है।

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हिंदू विवाह के प्रकार 

1. ब्रह्म विवाह

दोनो पक्ष की सहमति से किसी सुयोज्ञ वर से कन्या का विवाह निश्चित कर देना 'ब्रह्म विवाह' कहलाता है। सामान्यतः इस विवाह के बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके विदा किया जाता है। आज का "पूर्वायोजित विवाह (Arranged Marriage) 'ब्रह्म विवाह' का ही रूप है।

2. दैव विवाह

किसी सेवा कार्य (विशेषतः धार्मिक अनुष्टान) के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देना 'दैव विवाह' कहलाता है।

3. आर्श विवाह

कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यतः गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना "आर्श विवाह" कहलाता है|

4. प्रजापत्य विवाह

कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग के वर से कर देना 'प्रजापत्य विवाह' कहलाता है।

5. गंधर्व विवाह

परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है। दुष्यंत ने शकुन्तला से 'गंधर्व विवाह' किया था। उनके पुत्र भरत के नाम से ही हमारे देश का नाम "भारतवर्ष" बना।

6. असुर विवाह

कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना 'असुर विवाह' कहलाता है।

7. राक्षस विवाह

कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना 'राक्षस विवाह' कहलाता है।

8. पैशाच विवाह

कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना 'पैशाच विवाह' कहलाता है।



हिंदू विवाह भारतीय संस्कृति में एक महत्व पूर्ण संस्कार है, जिसे धार्मिक तौर पर पवित्र माना जाता है। ये विवाह हिंदू धर्म के अनुरूप होता है, जिसमें धार्मिक परंपराएं और रीतिरिवाजों का पालन किया जाता है। यहां कुछ मुख्य तत्व हैं जो हिंदू विवाह में शामिल होते हैं:

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कुंडली मिलान

विवाह से पहले वर -वधु की कुंडलियों का मिलान होता है। कुंडली मिलान, ज्योतिष शास्त्र के आधार पर होता है, जिसमें गृह-स्थितियों का मिलन देखा जाता है। इसमें लड़के और लड़की के गुणों का मिलान किया जाता है।

मंगनी

कुंडली मिलन के बदले अगर सब ठीक होता है, तो मंगनी होती है। इसमे दोनों परिवार के सदस्य एक दूसरे को सगुन देते हैं और एक दूसरे से वचन लेते हैं कि वे एक दूसरे से विवाह करेंगे। कई जगह इसे छेका, वरक्षा, गोदभराई आदि नामों से जाना जाता है।

विवाह मुहूर्त

विवाह के लिए शुभ मुहूर्त का चयन होता है। मुहूर्त का चयन कुंडली मिलान के आधार पर और पंडितों की सलाह से लगन पत्रिका के अनुसार होता है।

हल्दी

विवाह के पूर्व वर वधु के अपने अपने घर हल्दी की रस्म होती है जिसमे उनके पुरे शरीर पर हल्दी का उबटन लगाया जाता है।

बारात

विवाह के दिन दूल्हा अपने रिश्तेदारों, मित्रों आदि के साथ बाजे गाजे के साथ दुल्हन के दरवाजे पे आता है जिसका स्वागत लड़की पक्ष द्वारा किया जाता है। इसके साथ ही बाराती और घरातियों के लिए प्रीति भोज की व्यवस्था की जाती है।

सात फेरे

विवाह के दिन, दूल्हा-दुल्हन सात फेरे लेते हैं। हर फेरे के साथ एक-एक वचन लिया जाता है, जिसमें पति-पत्नी एक दूसरे के साथ जीवन भर का साथ निभाने का वायदा करते हैं।

मंगलसूत्र और सिंदूर

विवाह की प्रक्रिया मंगलसूत्र और सिंदूर दान के साथ संपन्न होती है जिसमे वर कन्या की मांग में सिंदूर भरता है और गले में मंगलसूत्र पहनाता है।

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कन्यादान

विवाह प्रक्रिया संपन्न हो जाने के पश्चात लड़की का पिता लड़की का कन्यादान करता है।

विदाई

दुल्हन का विदाई विवाह का एक भावुक अंश होता है। दुल्हन अपने माता-पिता के घर से विदा हो जाती है और नए जीवन की शुरुआत होती है।

आशीर्वाद

विवाह के बदले, परिवार और समाज के सदस्यों से आशीर्वाद लिया जाता है। इसमे वर और वधू को समाज की तरफ से शुभकामनाएं दी जाती हैं।



हिंदू विवाह, क्षेत्र और समाज के अनुरूप अलग-अलग होता है, और विभिन्न राज्यों और संप्रदायों में थोड़े भिन्न-भिन्न परंपराएं होती हैं। ये संस्कार, धार्मिक, सामाजिक और पारिवारिक एकता को मजबुत बनाता है।


मुस्लिम विवाह

मुस्लिम विवाह की प्रकृति के विषय में विद्वानों के विभिन्न विचार हैं। कुछ विधिशास्त्रियों के अनुसार मुस्लिम विवाह पूर्णरूपेण एक सिविल संविदा है जबकि कुछ लोगों ने विवाह को एक धार्मिक संस्कार की प्रकृति जैसा कहा है।
कुरान शरीफ विभिन्न हदीसो से यह स्पष्ट होता है कि मुस्लिम विवाह को केवल संविदा नहीं माना जा सकता, क्योंकि इस्लाम धर्म में निकाह करना भले ही आवश्यक ना हो परंतु पैगंबर ने विवाह करने पर अधिक बल दिया है और मुसलमानों को यह संदेश दिया है कि वह बालिग होने पर फौरन विवाह कर लें जिससे विचार से बचा जा सके।

'पैगंबर साहब ने हदीस में बताया है कि विवाह निकाह आधा ईमान होता है। कोई भी मोमिन तब तक मुकम्मल नहीं होता जब तक वह निकाह नहीं करता।'

इसप्रकार हम कह सकते हैं कि मुस्लिम निकाह करार के साथ साथ एक धार्मिक संस्कार भी है, जो इस्लाम में विवाह को सम्पन्न करने के लिए होता है। ये एक पवित्र और धार्मिक प्रकृति है, जिसमें दो व्यक्ति, मर्द और औरत, एक दूसरे के साथ जिंदगी बिताने के लिए सम्मति देते हैं।


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मुस्लिम विवाह के प्रकार 

मुस्लिम विवाह चार प्रकार के होते हैं जो इस प्रकार हैं:-

निकाह या वैध विवाह

निकाह में पति-पत्नी की स्वतंत्र सहमति होती है। शरीयत के मुताबिक मस्जिद में काजी के सामने निकाह होता है। इसमें सभी प्रकार के मुस्लिम रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है।

शून्य या बातिल विवाह


यह वह विवाह है जो निषिद्ध कोटि के पुरुष और स्त्री के बीच होता है, निषेध के कारण ऐसे विवाह मान्य नहीं होते हैं।

फासिद विवाह

इस प्रकार के विवाह में कुछ बाधाएँ आती हैं लेकिन कुछ संशोधन के बाद यह विवाह वैध हो जाता है।

मुताह विवाह

मुताह विवाह की प्रकृति अस्थायी होती है।प्रस्तुत है मुस्लिम निकाह की कुछ प्रमुख बातें :

इजाब और कुबूल

निकाह में दो मुख्य कदम होते हैं: इजाब और कुबूल। इजाब में दूल्हा अपनी इच्छा व्यक्त करता है कि वह दुल्हन से विवाह करना चाहता है, और कुबूल में दुल्हन अपनी सहमति देती है। ये दोनों कदम खुतबा के दौरान या किसी काजी के सामने जा सकते हैं।


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महर

महर मुस्लिम निकाह का एक महत्व पूर्ण हिसा है । इसमे दूल्हा दुल्हन को एक दूसरे के साथ जिंदगी बिताने के लिए महर करता है। महर को दुल्हन के हक में दिया जाता है, और ये उसकी सुरक्षा के लिए होता है।

वली की मौजूदगी

निकाह के समय, दुल्हन का वली (महरम) भी मौजूद होता है, जो उसकी सगी मर्द मौला होता है, जैसे उसका बाप या कोई और महरम होता है। उसके बिना निकाह ठीक नहीं माना जाता है।


गवाह

निकाह में गवाहों का होना जरूरी होता है। कम से कम दो गवाही होनी चाहिए, जो देखती है कि निकाह में सहमति बिना किसी दबाव के दी गई है। साथ ही वे निकाह के चश्मदीद होते हैं।


काज़ी की मौजूदगी

निकाह को सम्पन्न करने के लिए एक काजीमौजूद होता है। काजी निकाह नाम पढ़कर, दूल्हा-दुल्हन से इजाब-कुबूल लेता है, और ये भी देखता है कि सब कुछ इस्लामिक तौर पर सही हो।

दुआ

निकाह सम्पन्न होने के बदले, दुआ (प्रार्थना) की जाती है, जिसमें अल्लाह से दुआ की जाती है कि ये विवाह ख़ुशी से और समृद्धि के साथ हो।

निकाहनामा

निकाह का कानूनी दस्तावेज, निकाह नामा होता है। इसमे विवाह हुआ, विवाह का विवाह, और अन्य विवाह पूर्ण जानकारी होती है।

रुखसती

निकाह के बाद दुल्हन का रुखसती होता है, जिसमें वह अपने घर से अपने पति के घर चली जाती है।

हिन्दू विवाह और मुस्लिम विवाह में क्या अंतर है



मुस्लिम निकाह एक पवित्र और धार्मिक संस्कार है, जो इस्लाम धर्म के अनुयाइयों में महत्व पूर्ण है। ये संस्कार सामाजिक और धार्मिक संवेदनाओं को सहायक बनाता है और दो व्यक्तित्वों को एक दूसरे के साथ जिंदगी जीने का अधिकार देता है।

मुस्लिम महिला (तलाक अधिनियम 1986 पर अधिकारों का संरक्षण) की धारा 2 के तहत – मुस्लिम के बीच विवाह या निकाह एक पुरुष और महिला के बीच एक ” गंभीर समझौता ” या ” मिथक-ए-ग़लिद ” है, जो एक दूसरे के जीवन साथी की याचना करता है, जो कानून में है अनुबंध का रूप ले लेता है।

“ निकाह ” अपने आदिम अर्थ में नहर संयोजन का अर्थ रखता है। कुछ विद्वानों के अनुसार यह आम तौर पर संयोजन का प्रतीक है। कानून की भाषा में इसका तात्पर्य एक विशेष अनुबंध से है जिसका उपयोग पीढ़ी को वैध बनाने के उद्देश्य से किया जाता है।




हिन्दू विवाह और मुस्लिम विवाह में क्या अंतर है


हिंदू विवाह और मुस्लिम शादी दोनों भारतीय संस्कृति के भाग हैं, लेकिन इनमें कुछ अंतर होते हैं, खास धार्मिक रीतिरिवाज और परंपरा में। ये अंतर धर्म, संस्कृति और संप्रदाय के आधार पर होते हैं। यहां कुछ मुख्य अंतर दिए गए हैं:





  • हिन्दू विवाह में धर्म व धार्मिक भावनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, किन्तु मुस्लिम विवाह में भावनाओं का कोई स्थान नहीं होता है। सभी धार्मिक क्रियाएं तभी मान्य होती हैं जबकि पति-पत्नी मिलकर उन्हें सम्पन्न करें। धर्म को हिंदू विवाह का प्राथमिक उद्देश्य माना जाता है; पितरों को पिंडदान करने के लिए पुत्र की कामना की जाती है। हिन्दू विवाह आदर्श के विरुद्ध मुस्लिम विवाह मात्रा एक समझौता होता है जिससे यौन सम्बन्ध् स्थापित हो सके और सन्तानोत्पत्ति हो सके।
हिन्दू विवाह और मुस्लिम विवाह में क्या अंतर है


  • हिन्दू विवाह एक स्थायी सम्बन्ध है जिसे तोड़ना हिन्दू संस्कृति के विरुद्ध समझा जाता है। इसी कारण परम्परागत हिन्दू विधवा पुनर्विवाह को अच्छा नहीं समझते जबकि मुस्लिम विवाह को एक सुविधाजनक समझौता मानने के कारण पुरुष कभी भी अपनी पत्नी को सामाजिक रूप से तलाक दे सकता है ।


  • विवाह व्यवस्था के स्वरूप प्रस्ताव रखना और उसकी स्वीकृति मुस्लिम विवाह की विशेषताएं हैं। प्रस्ताव कन्या पक्ष से आता है उसे जिस बैठक में प्रस्ताव आता है उसी में स्वीकार भी किया जाना चाहिए और इसमें दो साक्षियों का होना भी आवश्यक होता है। हिन्दुओं में ऐसा रिवाज नहीं है। मुस्लिम इस बात पर जोर देते हैं कि व्यक्ति में संविदा का क्या सामर्थ्य है परन्तु हिन्दू इस प्रकार के सामर्थ्य में विश्वास नहीं करते। मुस्लिम लोग मेहर की प्रथा का पालन करते हैं जबकि हिन्दुओं में मेहर जैसी प्रथा नहीं होती है।


  • हिन्दुओं में कानून के द्वारा केवल एक विवाह का प्रचलन है जबकि मुस्लिम कानून आज भी पुरुष को चार पत्नियाँ तक रखने की अनुमति देते हैं।

  • एंडोगैमी नियम- हिंदुओं को अपनी ही जाति में शादी करने के लिए प्रतिबंधित करते हैं जबकि मुसलमानों के बीच, शादी रिश्तेदारो और रिश्तेदारों के बीच हो जाती हैं। बहिर्विवाह के नियमों के संबंध मे -हिंदुओं के बीच कई प्रकार के बहिर्विवाह नियम प्रचलित हैं जैसे गोत्र बहिर्विवाह, प्रवर बहिर्विवाह और सपिंडा विवाह विवाह जो यह निर्धारित करते हैं कि पैतृक पक्ष से सात पीढ़ियों और मातृ पक्ष से पांच पीढ़ियों के रिश्तेदार एक दूसरे से शादी नहीं कर सकते हैं जबकि बहिर्विवाह के नियमों के संबंध मे-, मुस्लिम समुदाय इसे अपने बहुत करीबी रिश्तेदारों पर लागू करता है।


हिन्दू विवाह और मुस्लिम विवाह में क्या अंतर है




  • मुसलमान अस्थाई विवाह मूता को मानते हैं, लेकिन हिन्दू नहीं मानते।

  • हिन्दुओं में विवाह-विच्छेद केवल मृत्यु के बाद ही सम्भव है, लेकिन मुसलमानों में पुरुष के उन्माद पर विवाह विच्छेद हो जाता है। मुसलमान पुरुष अपनी पत्नी को न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना भी तलाक दे सकता है, लेकिन हिन्दू लोग न्यायालय के माध्यम से ही विवाह विच्छेद कर सकते हैं।


ये कुछ मुख्य अंतर हैं, लेकिन हर संप्रदाय और क्षेत्र में विभिन्न परंपराएं और परंपराएं होती हैं। हर विवाह और शादी अपने-अपने संप्रदायिक और सांस्कृतिक अनुरूप होते हैं।

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